हाल के दिनों में आतंकवाद की बढ़ती घटनाओं पर चिंता जताते हुए रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने कहा कि गैर पारंपरिक खतरे और आतंकवाद दक्षिण पूर्व एशिया क्षेत्र के लिए सबसे महत्वपूर्ण चुनौतियों बन गए हैं।
उन्होंने हर जगह सख्ती से आतंकवाद का विरोध करने, आतंकवाद का राज्य नीति के एक औजार की तरह प्रयोग को अवैध घोषित करने तथा आतंकवादी नेटवर्कों का पता लगाने और ध्वस्त करने में बिना किसी संशय के सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया।
पर्रिकर रक्षा मंत्रालय के तत्वावधान में नई दिल्ली के नेशनल डिफेंस कॉलेज (एनडीसी) द्वारा आयोजित रक्षा विश्वविद्यालयों के प्रमुखों/कालेजो/संस्थाओं की बैठक को संबोधित कर रहे थे।
रक्षामंत्री ने कहा कि समुद्री क्षेत्र समृद्धि के लिए एक मुख्य आधार है, जो कई तरह के संकटों से घिरा है। उन्होंने नौवहन की स्वतंत्रता, ऊपर से उड़ान तथा अबाधित वैध वाणिज्य के लिए भारत के समर्थन को दोहराया जो अंतर्राष्ट्रीय कानूनों के सिद्धांत पर आधारित है और विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन समुद्रीय कानून (यूएनसीएलओएस) में परिलक्षित होता है।
उन्होंने कहा, भारत का मानना है कि राज्यों को धमकी या बल उपयोग के बिना शांतिपूर्ण साधनों के माध्यम से ही विवादों को हल करना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारत की इंडो-पसिफ़िक क्षेत्र के तरफ विस्तृत सोच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के द्वारा पुनः परिभाषित शब्द सागर (एसएजीएआर) से परिलिक्षित होती है जिसका मतलब हैक्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा एवं विकास।
रक्षा मंत्री ने आगे कहा कि भारत न केवल अपने भू-भाग एवं समुद्री क्षेत्रों तथा हितों की रक्षा करने के प्रति प्रतिबद्ध है। अपितु वह अपनी क्षमताएं अन्य क्षेत्रीय देशों के लिए भी उपलब्ध करवायेगा।उन्होंने सदस्य देशों का आह्वान करते हुए कहा कि हमें आसियान क्षेत्रीय मंच की दक्षता और गतिशीलता में और अधिक वृद्धि करनी चाहिए तथा जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष एवं साइबर सुरक्षा जैसी गैर पारंपरिक सुरक्षा चुनौतियों के लिए बहु-राष्ट्रीय प्रतिक्रियाओं पर सहयोग बढ़ाने चाहिए।
इस तीन दिवसीय बैठक में 23 सदस्य देशों और चीन, जापान, फिलीपींस, वियतनाम, रूस, यूरोपीय संघ और आसियान सचिवालय जैसे संगठनों के प्रतिनिधि भाग ले रहे हैं।
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