नई दिल्ली: राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) और त्रिभाषा फ़ार्मूला एक बार फिर सुर्खियों में है। इसकी वजह केंद्र सरकार द्वारा तमिलनाडु को समग्र शिक्षा अभियान के अंतर्गत दी जाने वाली धनराशि को रोकना है । वर्तमान समय में एक बड़ा मुद्दा राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP-2020) के तहत प्रस्तावित त्रिभाषा फार्मूला (TLF) है।
तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने पिछले सप्ताह ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर कहा था कि केंद्र सरकार ने अब तक राज्य को 2,152 करोड़ रुपये जारी नहीं किए हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम के प्रावधानों को लागू करने के लिए इस फंड की जरूरत है । स्टालिन ने केंद्र सरकार से जल्द ही फंड रिलीज करने की मांग भी की थी।
तमिलनाडु की सरकार किसी भी कीमत पर इन फार्मूलों को स्वीकार करने के तैयार नहीं, उसका कहना है कि वह पुराने दो भाषा फार्मूले पर कायम रहेगी, वह सिर्फ बच्चों को दो भाषाएं पढ़ायेगी, तमिल और अंग्रेजी। इन दोनों के अलावा कोई तीसरी भाषा नहीं।
उसका कहना है कि वह संवैधानिक तौर पर केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तुत राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू करने के लिए बाध्य नहीं है, क्योंकि शिक्षा संविधान में समवर्ती सूची में है। यहां ध्यान रेखांकित कर लेना जरूरी है कि समवर्ती सूची संविधान के उन विषयों की सूची है, जिस पर केंद्र और राज्य सरकारों का समान अधिकार है।
तमिलनाडु में हिंदी विरोध का इतिहास दशकों पुराना है। 1930 के दशक में मद्रास प्रेसीडेंसी में हिंदी को अनिवार्य करने की कोशिश की गई थी, जिसका कड़ा विरोध हुआ। इसके बाद, 1965 में हिंदी को भारत की आधिकारिक भाषा बनाने के प्रयास के दौरान राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिनमें कई लोगों की जान गई थी। इस आंदोलन के कारण केंद्र सरकार को यह वादा करना पड़ा कि हिंदी को अन्य क्षेत्रीय भाषाओं पर थोपा नहीं जाएगा।
आज जब नई शिक्षा नीति और त्रिभाषा फॉर्मूला को लागू करने की बात हो रही है, तो तमिलनाडु उसी पुराने तर्क और संघर्ष को दोहरा रहा है। डीएमके और अन्य द्रविड़ दल इसे “भाषाई उपनिवेशवाद” कह रहे हैं। राज्य में हिंदी विरोधी नारों के साथ-साथ रेलवे स्टेशनों से हिंदी संकेत हटाने और विरोध प्रदर्शन जैसी घटनाएँ सामने आ रही हैं।
भारत एक बहुभाषी और बहुसांस्कृतिक देश है, जहाँ भाषा और राजनीतिक मुद्दे अक्सर परस्पर जुड़े होते हैं। हाल के दिनों में तमिलनाडु और अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों में नई शिक्षा नीति (एनईपी) 2020, त्रिभाषा फॉर्मूला, हिंदी विरोध और लोकसभा सीटों के परिसीमन को लेकर बड़े विवाद उभरे हैं। तमिलनाडु में यह संघर्ष केवल भाषा तक सीमित नहीं है, बल्कि राजनीतिक प्रतिनिधित्व और क्षेत्रीय अस्मिता से भी जुड़ा हुआ है। राज्य सरकार और कई क्षेत्रीय दल इसे केंद्र सरकार की नीतियों से उपजा असंतोष मानते हैं, जो क्षेत्रीय भाषाओं और सांस्कृतिक पहचान को प्रभावित कर सकता है। यह विवाद समय के साथ और गहराता जा रहा है और आने वाले वर्षों में इसके राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव स्पष्ट रूप से देखे जा सकते हैं।
भारत सरकार ने 2020 में नई शिक्षा नीति (एनईपी) लागू की, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली में सुधार करना है। इस नीति के तहत एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव त्रिभाषा फॉर्मूला है, जिसमें छात्रों को तीन भाषाएँ सीखनी होंगी: मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा, हिंदी या कोई अन्य भारतीय भाषा, और अंग्रेज़ी या कोई अन्य विदेशी भाषा। तमिलनाडु ने इस नीति का कड़ा विरोध किया, क्योंकि वहाँ पहले से ही “द्विभाषा नीति” लागू है, जिसमें छात्र केवल तमिल और अंग्रेज़ी पढ़ते हैं। तमिलनाडु सरकार और डीएमके ने इसे “हिंदी थोपने का प्रयास” करार दिया है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने इसे तमिल भाषा और संस्कृति के लिए खतरा बताया है।
तमिलनाडु ही नहीं, अन्य दक्षिण भारतीय राज्यों जैसे केरल और आंध्र प्रदेश ने भी हिंदी को अनिवार्य किए जाने का विरोध किया है। कर्नाटक में भी भाषा को लेकर संवेदनशीलता है, लेकिन वहाँ हिंदी विरोध उतना तीव्र नहीं है जितना तमिलनाडु में देखा जाता है।
तमिलनाडु सरकार का कहना है कि इस तीसरी भाषा के नाम पर नरेंद्र मोदी सरकार तमिलनाडु पर नए सिरे से हिंदी थोपना चाहती है, जिसका लंबे समय से तमिलनाडु में विरोध होता रहा है। दूसरी तरफ नरेंद्र सरकार में शिक्षा-मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने तमिलनाडु को चेतावनी देते हुए कहा कि यदि वह त्रिभाषा फार्मूला स्वीकार नहीं करता है, तो उसे समग्र शिक्षा अभियान के लिए आंवटित धनराशि नहीं दी जाएगी।
हिंदी भाषी राज्यों में 10 प्रतिशत से कम लोग ऐसे हैं, जो दो भाषाएं बोल सकते हैं। इन दो भाषाओं में ज्यादातर हिंदी और अंग्रेजी या हिंदी और उर्दू बोलने वाले हैं। उत्तर प्रदेश में सिर्फ 11.45 प्रतिशत लोग हैं, जो दो भाषाएं बोल सकते हैं, बिहार में ऐसे लोगों का प्रतिशत 12.82, मध्यप्रदेश में 13.51 प्रतिशत और राजस्थान में 10.9 प्रतिशत।
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