जाने माने चिंतक के एन गोविंदाचार्य ने भारत को भारत के नजर से देखने की जरूरत को रेखांकित करते हुए कहा, भारत को कुछ साल रूस बनाने की कोशिश हुई फिर अमेरिका बनाने की लेकिन अब ब्राजील बनकर रह गया जबकि भारत बुनियादी तौर पर उनसे अलग है।
उन्होंने कहा कि यहां 1.8 हेक्टेयर प्रति व्यक्ति जमीन का अनुपात है। यहां की तकनीक को लेकर इकोनॉमिक्स, इकोलॉजी और इथिक्स का ध्यान रखने की जरूरत है।
गोविंदाचार्य का कहना है कि भारत में गर्मियों की छुट्टी की जगह बरसात की छुट्टी होनी चाहिए ताकि उस वक्त यहां के बच्चे खेतों में भी जुड़ सकें।
गोविंदाचार्य ने कहा, अधिष्ठान परिवर्तन की जरूरत है। आप देखें तो मानव केंद्रित विचार के चलते पिछले 500 सालों में जल, जंगल, जमीन और जानवर के साथ जन का सामंजस्य बिगड़ा है। इस दौर में विकास को जीडीपी, विकास दर, ट्रिकल डाउन थ्योरी से देखा गया।
उन्होंने कहा कि भारत की तासीर वनाच्छादन और गोमता से जुड़ी है। जबकि इनकी बहुत बुरी स्थिति है। जहां देश में 33 फीसद वनाच्छादन होना चाहिए वहां 23 फीसद ही है।
गोविंदाचार्य ने कहा कि अंग्रेज जब भारत आए थे तब एक व्यक्ति पर आठ गोवंश थे जब देश आजाद हुआ यानी 1947 में एक मानव पर एक गोवंश बचे। आज की स्थिति है कि सात लोगों पर एक गोवंश हैं। ये विकार है या विकास।
उन्होंने कहा, विकास तब माना जाएगा जब खेत विष मुक्त हो, जलस्तर बढ़े, वनाच्छादन बढ़े, नदियां सदा नीरा हों। ऐसे ही हरेक को रोज आधा किलो फल, आधा किलो दूध, आधा किलो हरी सब्जी मिले, तब विकास होगा। यही रामराज्य की संकल्पना भी है। इसके लिए प्रकृति केंद्रित विकास की जरूरत है।
राष्ट्रीय स्वभिमान आंदोलन के संस्थापक संरक्षक श्री के एन गोविंदाचार्य की नर्मदा दर्शन यात्रा और अध्ययन प्रवास पर हैं । उनकी यात्रा 20 फरवरी को अमरकंटक से शुरू हुई थी।
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