पत्रकार तरुण सिसोदिया सुसाइड मामले को लेकर कई सवाल खड़े हो रहे हैं. रिपोर्टिंग के दौरान कोरोना पॉजिटिव होने के बाद तरुण करीब 15 दिन पहले इलाज के लिए एम्स ट्रामा सेंटर में एडमिट हुए थे. बताया जा रहा है कि उनके इलाज में लापरवाही बरती जा रही थी.
वहीं, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्धन ने पत्रकार तरुण सिसोदिया की मौत पर कहा कि मेरे पास अपना दुख व्यक्त करने के लिए कोई शब्द नहीं है. ये एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना थी. उनके पूरे परिवार के प्रति मेरी संवेदना है.
इस मामले में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने एम्स निदेशक को तुरंत आधिकारिक जांच करने का आदेश दिया है. साथ ही एक उच्च-स्तरीय कमेटी गठित कर 48 घंटे में रिपोर्ट मांगी है. इस जांच समिति में चीफ ऑफ न्यूरोसाइंस सेंटर से प्रोफेसर पद्मा, मनोचिकित्सा विभाग के हेड आरके चड्ढा, डिप्टी डायरेक्टर (एडमिन) डॉक्टर पांडा और डॉ यू सिंह शामिल हैं.
आरोप है कि ट्रामा सेंटर प्रशासन ने तरुण के फोन को जब्त करके उन्हें आईसीयू में शिफ्ट किया, ताकि वो आगे कोई शिकायत ना कर पाएं और अंदर की अव्यस्था की कहानी बाहर न जा सके.
तरुण को वेंटिलेटर की जरूत थी. कुछ दिनों पहले खबर आई थी कि तरुण अपने वॉर्ड से गायब हैं, उनका फोन भी बंद था. हालांकि हेल्थ बीट कवर करने वाले पत्रकारों को इसकी जानकारी हो गई थी.
सवाल उठ रहे हैं...
तरुण को कोरोना वॉर्ड से आईसीयू में क्यों शिफ्ट किया गया ?
फैमिली से पूरी तरह संपर्क क्यों खत्म किया गया, जबकि संपर्क में रहने से उन्हें मानसिक रूप से राहत मिलती?
किन परिस्थितियों में तरुण ने अपने साथियों के एक ग्रुप में लिखा कि मेरा मर्डर हो सकता है?
फेसबुक पोस्ट में कुछ पत्रकारों ने तरूण के सोशल मीडिया पोस्ट का जिक्र करते हुए लिखा है कि
वो पत्थरों को भी चीर कर निकल जाते हैं।
जो मुश्किल हालात में हौसला दिखाते हैं।।
क्या 7 जून को फेसबुक वॉल पर ऐसा लिखने वाला तरुण 6 जुलाई को आत्महत्या कर सकता है?
कुछ लोग कह रहे हैं तरूण सिसोदिया ने कोरोना के डर से खुदकुशी कर ली। तरुण डरने वालों में से नहीं था। 6 महीने पहले जब डॉक्टरों ने बताया कि उसे ब्रेन ट्यूमर है तो उसने हमसे बोल दिया कि किसी को बताएं न। हम काम को मना करते रहे और वह खबरें लगातार रिपोर्ट करता रहा। ऐसे हार कर भागने वालों में से नहीं था।
एक पत्रकार ने तरूण के संदर्भ में लिखा कि पत्रकारिता के संस्थानों में क्या सिखाते हैं यह किसी से छुपा नहीं है। मैंने पत्रकार के तौर पर जो कुछ सीखा वो अपने ऐसे संपादकों से सीखा जिन्होंने हाथ पकड़ कर सिखाया। गलती की तो जम कर डांट भी पिलाई। काम के लिए सिर पर सवार भी रहे। लेकिन लगातार साथ भी रहे। अब भी बड़े भाई या दोस्त की तरह हालचाल पूछते रहते हैं
जिस अखबार में वे काम करते थे (दैनिक भास्कर), वहां एक संपादक पर भी तरूण को परेशान करने के आरोप लगाए जा रहे हैं । उनके बीमार रहने के दौरान बीट बदलने और तरह तरह से परेशान करने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं ।
सिर्फ कोरोना के डर से हुई एक रिपोर्टर की मौत बता कर रफादफा करने की कोशिश होगी। लेकिन यह एक मेहनती पत्रकार को खुद की जिंदगी खत्म करने की कगार पर ढकेलने की एक साजिश है।
तरुण के बाद उसकी दो बेटियों और परिवार के साथ खड़े होने का वक्त है.
पत्रकारों की स्थिति पहले भी ठीक नहीं थी और आज भी उनकी हालत में बेहतर नहीं है। एक वर्ग को छोड दें तब पत्रकार मुश्किल से अपन घर चला पाता है।
पत्रकारों से जुडे कई संगठन है लेकिन पत्रकारों की स्थिति बदतर ही होती जा रही है। सरकार के स्तर पर भी पत्रकारों की सुध लेने वाला कोई नहीं है।
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