पाकिस्तान की तालिबान से दोस्ती अब जगजाहिर हो गई है और दुनिया के देशों को पाकिस्तान की यह दोहरी चाल पसंद नहीं आ रही है। ऐसे में अब अमेरिका ने फैसला किया है कि वह पाकिस्तान को लेकर अपने रिश्तों की समीक्षा करेगा और भविष्य में कैसे रिश्ते पाकिस्तान के साथ रखने हैं यह तय करेगा।
पाकिस्तान एक ओर जहां तालिबान आतंकियों की मदद करता रहा। वहीं, दुनिया को यह भरोसा देता रहा कि वह अफगानिस्तान सरकार की मदद कर रहा है। इससे अमेरिका नाखुश है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने अमेरिकी सदन में यह जानकारी दी।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, सदन में चर्चा के दौरान एंटनी ब्लिंकन ने माना कि पाकिस्तान ने दोनों तरफ से खेल खेला है। उसने दुनिया को गुमराह किया। इसे देखते हुए अमेरिका पाकिस्तान के साथ संबंधों की दोबारा समीक्षा करेगा। साथ ही तय करेगा कि क्षेत्र में पाकिस्तान को क्या भूमिका निभानी है। इस दौरान अमेरिकी सांसदों का पाकिस्तान पर खुलकर गुस्सा फूटा।
पाकिस्तान की दगाबाजी पर बाइडेन प्रशासन पर सवाल उठ रहे हैं। लोग दो दशकों से चले आ रहे पाकिस्तान के खेल को लेकर नाराज हैं। ब्लिंकन ने इस सवालों का जवाब दिया है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान ने हक्कानी सहित तालिबानी आतंकियों को शरण दी। वहीं, वह आतंकवाद के खिलाफ भी कई जगह सहयोग करता दिखा। उसकी भूमिका और हित परस्पर विरोधी हैं।
ब्लिंकन ने दो-टूक कहा है कि तालिबान शासित सरकार को मान्यता या कोई मदद चाहिए तो उसे अंतरराष्ट्रीय बिरादरी की अपेक्षाओं पर खरा उतरना होगा। आगे चलकर पाकिस्तान सहित सभी देशों को अमेरिका उन अपेक्षाओं से अवगत कराएगा। हालांकि, तमाम अमेरिकी सांसदों ने पाकिस्तान के दोगले रवैये को लेकर उस पर कड़ी कार्रवाई की मांग की है।
वहीं, अफगानिस्तान में अंतरिम सरकार बना लेने के बाद भी तालिबान में सब कुछ ठीक नहीं है । अंतरिम सरकार में हक्कानी गुट को प्रमुखता मिलने से बिरादर गुट नाराज है। तालिबान सरकार में उप प्रधानमंत्री बनाये गए मुल्ला अब्दुल गनी बिरादर इस स्थिति से खासे क्षुब्ध बताये जा रहे हैं और मीडिया में आ रही खबरों की मानें तब बिरादर ने दोहा समझौते में अमेरिकी प्रतिनिधि जलमे खलिलजाद से सम्पर्क किया है।
बिरादर का कहना है कि नयी व्यवस्था में दोहा समझौते का पालन करना संभव नहीं हो पा रहा है। ऐसे में ऐसी आशंका व्यक्त की जा रही है कि कहीं एक बार फिर से अफगानिस्तान गृह युद्ध की कगार पर न पहुंच जाए ।
विशेषज्ञों का कहना है कि बिरादर दोहा समझौते में तालिबान का प्रमुख चेहरा था और ऐसा माना जा रहा है कि नयी सरकार बिरादर के नेतृत्व में ही बनेगी । लेकिन पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी की दबाव में अंतरिम सरकार में बिरादर का कद घटा दिया गया ।
वहीं, पंजशीर में अभी भी प्रतिरोधी फोर्स ने तालिबान को गंभीर चुनौती दी हुई है। प्रतिरोधी फोर्स के मुखिया अहमद मसूद और दिग्गज नेता अमरूल्ला सालेह अभी भी पंजशीर में मौजूद बताये जाते हैं ।
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