भारत ने अफगानिस्तान की राजधानी से अपने नागरिकों को बाहर निकालने के अपने प्रयासों के तहत तीन उड़ानों के जरिए अपने 329 नागरिकों और दो अफगान सांसद समेत करीब 400 लोगों को रविवार को वापस निकाला ।
भारत पहुंचे अफगानी सांसद नरेंदर सिंह खालसा यहां आने के बाद भावुक हो गए और अपने आंसू नहीं रोक पाए । उन्होंने कहा कि पिछले 20 सालों में जो कुछ भी बना था सब खत्म हो गया, अब सब जीरो हो गया है ।
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार,अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद कई हजार लोग देश छोड़ने का प्रयास कर रहे हैं और इस क्रम में काबुल अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के पास सात अफगान नागरिक मारे गए ।
इसमें कहा गया है कि ये भगदड़ इसलिए मची थी, क्योंकि तालिबानी एयरपोर्ट के पास हवा में गोलियां चलाते हैं. ये गोलियां उन लोगों को डराने के लिए चलाई जा रही हैं जो देश छोड़कर जाना चाहते हैं ।
महिलाओं को दबाने, उन्हें नज़रबंद रखने की अपनी मूल आदत तालिबान छोड़ नहीं पाया और इसी डर से अफगानिस्तान के गर्ल्स बोर्डिंग स्कूल ने छात्राओं की सुरक्षा के लिहाज से उनके सभी दस्तावेज जला दिए । इसका स्कूल के को-फाउंडर ने वीडियो भी शेयर किया है. जो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है।
स्कूल की को-फाउंडर शबाना बाशिज राशिक ने बैक-टू-बैक 6 ट्वीट किए। इसमें उन्होंने लिखा कि करीब 20 साल बाद, लड़कियों के बोर्डिंग स्कूल की फाउंडर होने के नाते मैं अब छात्राओं के डॉक्यूमेंट्स उनका अस्तित्व मिटाने के लिए नहीं, बल्कि उन्हें और उनके परिवार को बचाने के लिए जला रही हूं ।
काबुल के तालिबान के कब्जे में आने के बाद अफगानिस्तान में संशय, भय और अफरातफरी की स्थिति है । सुरक्षा चिंताओं के मद्देनजर कई देश जल्द से जल्द अपने राजनयिकों और नागरिकों को अफगानिस्तान से निकालने में जुटे हैं ।
पूर्व राजनयिक एवं सामरिेक मामलों के विशेषज्ञ पी शतोब्दन का कहना है कि भारत को अपनी विदेश नीति में ‘पश्तून राष्ट्रवाद’के तत्व का व्यापक समावेश करना होगा और अपनी रणनीति में ‘‘डूरंड रेखा’’से जुड़े आयाम को प्रमुखता देनी होगी । भारत को पूरा निवेश ‘पश्तून राष्ट्रवाद’पर करना चाहिए ।
उन्होंने कहा कि अफगानिस्तान इस सीमा को नहीं मानता है । इस स्थिति को देखते हुए ही पाकिस्तान ने 1992-93 में मिशन तालिबान पर काम शुरू कियाा था ताकि डूरंड रेखा विवाद पर अफगानिस्तान के लोगों का ध्यान न जाए ।
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