पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर कई महीने तक चले गतिरोध के बाद चीनी सेना पीछे हट गई है । भारतीय जनता पार्टी के हलकों में राहत की एक बड़ी बात यह है कि इस समस्या का संतोषप्रद हल किया गया है।
पूर्वी लद्दाख सीमा से प्रतिद्वंद्वी सैनिकों द्वारा क्रमिक खींचतान, आठ महीने तक चले टकराव के बाद निकला समाधान सरकार के असाधारण संकल्प को रेखांकित करता है ।
यह समझौता सम्मानजनक था और इसका श्रेय नेतृत्व को दिया जाना चाहिए और कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी के लिये भी इसमें बुरा नहीं मानने वाली कोई बात नहीं है ।
बेशक, चीन अपने स्वयं के कन्फ्यूशियन दर्शन के अनुसार सीमा विवाद को निपटाने के लिए जल्दी में नहीं हैं और यह वास्तव में भारत के लिए वास्तविक चुनौती है।
ऐसे समय में हमें यह समझने की जरूरत है कि जब तक हम अपनी अर्थव्यवस्था को तीव्र दर से नहीं बढ़ाते हैं, तब तक एक मजबूत ताकत के रूप में हम नहीं खड़े हो पायेंगे । हाल के वर्षों में हम सभी ने यह देखा गया है कि चीन मुखर और आक्रामक तरीके से वैश्विक मंचों को अपनी इच्छाओं के लिए झुकना चाहता है।
भारत सौभाग्यशाली है कि अमेरिका सहित संपूर्ण स्वतंत्रत वैश्विक शक्तियां एवं देश चीन की आक्राकमता को लेकर भारत के साथ खड़े हैं।
हालांकि यहीं से स्थितियां हमें दूसरे मोर्चे पर ले जाती है जो अभी भी हल होने की प्रतीक्षा कर रहा है और यह मुद्दा तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन है ।
हालांकि किसानों का विरोध अपना प्रभाव से बहुत अधिक खो चुका है, लेकिन तथ्य यह है कि अगर सरकार प्रदर्शनकारियों को पराजित रूप में लौटाती है, तो इससे भी सरकार को कुछ भी हासिल नहीं होगा ।
एक समझदार नेतृत्व प्रदर्शनकारियों को यह महसूस करायेगा कि वह उनकी चिंता करता है और उन्हें साथ लेने का प्रयास करेगा । ऐसे में पंजाब के सिख किसानों को ऐसी स्थित जरूर प्रदान करनी चाहिए कि उनके पास अपने सिर को ऊंचा रखने के लिए कुछ हो।
ये हमारे अपने लोग हैं। वे सुधारों के महत्व को महसूस करने में धीमे हो सकती हैं, लेकिन उन्हें अपमानित नहीं किया जा सकता है।
राजनेता के लिये के लिए आवश्यक है कि प्रधान मंत्री खुद सिंघू और गाजीपुर सीमाओं पर उन लोगों तक पहुंचे।
यहां तक कि यह सुनिश्चित होने के बावजूद कि तीन कृषि सुधार कानून अपने दीर्घकालिक हित में हैं, सरकार को विशालता दिखाने की आवश्यकता है।
पूर्वी लद्दाख गतिरोध के मामले में चीनी आक्रामकता की स्थिति में जब भारतीय सीमा के पहरेदारों के समक्ष एक स्थिति उत्पन्न हुई थी तब राजनीतिक नेतृत्व की दृढ़ता ने सशस्त्र बलों को प्रेरित किया ।
इसके बाद सेना ने मैदान खड़ी हो गईऔर दुश्मनों को जमकर रोका।
गाल्वन घाटी संघर्ष में बीस भारतीय सैनिे शहीद हुई और काफी चीनी सैनिक भी मारे गए हालांकि चीन केवल चार सैनिकों के मारे जाने की पुष्टि की ।
एक समय ऐसी स्थिति भी उत्पन्न हो गई थी कि भारत और चीन एक वास्तविक युद्ध के कगार पर थे । यह तब हुआ जब भारतीय सैनिकों ने कैलाश रेंज में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण ऊंचाइयों पर कब्जा कर लिया था ।
यह, चीन द्वारा चुनौती का सामना करने के लिए भारत के आक्रामकता से लड़ने के लिए सरकार के दृढ़ संकल्प को रेखांकित करता है ।
एक समय, लद्दाख सेक्टर में 50,000 सैनिक थे, हम सबसे बुरे के लिए तैयार थे।
चीन ने कोरोना वायरस के वैश्विक संकट के दौर मेंआक्राकता के जरिये अतिक्रमण का प्रयास किया । चीनी खतरे से निपटने के लिये भारत को अमेरिका सहित पश्चिमी देशों देशों से हथियार एवं पहाड़ों के अनुरूप उपकरण खरीदे ।
इसके साथ ही भारत ने एप सहित कारोबार पर रोक लगाकर चीन को जवाब भी दिया । अमेरिका, जापान, आस्ट्रेलिया सहित कुछ यूरोपीय देशों ने भी प्रतिक्रिया दी । ऐसे में चीन के सामने लोकतांत्रिक देशों की गोलबंदी की स्थिति थी ।
भारत सरकार ने भी कूटनीतिक एवं सैन्य मोर्चे पर ठोस प्रयास किये जिसके परिणाम स्वरूप चीन के पास पीछे हटने के अलावा कोई और विकल्प नहीं बचा था ।
ताइवान को लेकर क्या अमेरिका और चीन युद्ध की तरफ आगे बढ़ रहे हैं ?
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